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कूड़े,कचरे की ढेर मे खोज रहा अपना भविष्य: नौनिहाल

कूड़े कचरे की ढेर में दो जून की रोटी तलाश रहे नौनिहाल

चंदौली। देश में शिक्षा का अधिकार कानून लागू है। छह से 14 वर्ष के बच्चों के लिए शिक्षा को मौलिक अधिकार का दर्जा दे दिया गया। लेकिन, अब भी बड़ी संख्या में बच्चे स्कूल से दूर हैं। चंदौली की सड़कों पर सुबह से लेकर दोपहर तक कूड़े की ढेर से प्लास्टिक, लोहा आदि कबाड़ चुनते दर्जनों बच्चे दिख जाते हैं। जिन हाथों में किताब-कॉपी होनी चाहिए, वो बच्चे दो जून की रोटी के लिए कूड़ा चुन रहे है। पीठ पर किताबों की बोझ नहीं, बल्कि प्लास्टिक बोरी में रद्दी और गंदगी रहती है। आज भी कूड़े के ढेर में गरीब व असहाय बच्चे अपना भविष्य तलाशते नजर आ रहे हैं। होश संभालते ही बीमारियों की प्रवाह किए बिना कूड़े की ढेर से ही अपनी दिनचर्या की शुरुआत करते हैं। जबकि गरीबों बच्चों को स्कूल से जोड़ने के लिए सर्व शिक्षा अभियान के तहत जिला में अभियान चलाया जा रहा है। लेकिन, कूड़े की ढेर पर कबाड़ चुनते बच्चों की टोली सरकारी घोषणा और वायदों की हकीकत बयां कर दे रहे हैं।

लालिमा निकलते ही बच्चे भी छोड़ देते हैं घर

सूरज की पहली किरण के साथ पीठ पर प्लास्टिक का थैला या बोरा लेकर निकल पड़ने वाले इन बच्चों के स्वास्थ्य या सुरक्षा की गारंटी कोई लेने को तैयार नहीं। सरकारी महकमा से लेकर स्वयंसेवी संस्थाएं तक अपनी जिम्मेवारी का निर्वाहण करने में पूरी तरह से विफल हैं। राह चलने वाले भी इन्हें उपेक्षा और तिरस्कार की दृष्टि से देखते हैं और इनसे बच निकलते हैं।

गरीबी ने बढ़ाई जिम्मेदारी : कम उम्र में ही इन बच्चों को गरीबी उन्हें जिम्मेवारी का एहसास करा देती है। अपने माता-पिता की मदद के लिए ये बच्चे दिन भर कबाड़ चुनते हैं, ताकि चार पैसे अपने अभिभावकों की हथेली पर रख सकें।

इन इलाकों में दिख जाते हैं ऐसे बच्चे :

कूड़ा चुनने वाले बच्चे सकलडीहा बाजार, चहनियां, मुगलसराय, चकिया, नियमताबाद, दुल्हीपुर, तारापुर, सहित अन्य इलाकों में प्रत्येक दिन दिख जाते हैं।

सरकार को सर्वे करा कर ऐसे बच्चों का नामांकन विद्यालयों में कराया जाना चाहिए। वहीं, ऐसे बच्चों की नियमित मॉनिटरिग की व्यवस्था की जानी चाहिए। ताकि, वे फिर से ड्राप आउट नहीं हो सकें। वहीं, ऐसे बच्चों के अभिभावकों को स्वरोजगार से जोड़ने की भी योजना बनाई जानी चाहिए। तभी सही मायने में ऐसे बच्चों को भी शिक्षा का अधिकार कानून का लाभ मिलेगा। अभी तो कागजों पर ही बच्चों के नामांकन का अभियान चलाया जाता है।

रजनी कान्त पाण्डेय

मैं रजनी कांत पाण्डेय पत्रकारिता के क्षेत्र में पिछले 15 वर्ष से अधिक समय से कार्यरत हूँ,इस दौरान मैंने कई प्रमुख राष्ट्रीय हिंदी दैनिक समाचार पत्रों में अपनी सेवाएँ दे चूका हूँ. फ़िलहाल समाचार सम्प्रेषण का डिजिटल माध्यम को चुना है जिसके माध्यम से जनसरोकार की ख़बरों को प्रमुखता से प्रकाशित कर सकूं |

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