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विश्व गौरैया दिवस: गौरैया संरक्षण आवश्यक

चंदौली। स्वयं को परिस्थितियों के अनुकूल बना लेने वाली नन्हीं सी गौरैया दो दशक पहले तक घर के मुड़ेरों पर, खेत खलिहानों में हर तरफ झुंड में उड़ती देखी जाती थी। लेकिन अब यह विलुप्ति के कगार पर पहुंच गई है। यह एक संकटग्रस्त और दुर्लभ पक्षी की श्रेणी में आ गई है। भारत के अलावा विश्व के कई हिस्सों में भी इनकी संख्या काफी कम रह गई है। इनके भोजन तथा पानी की कमी, पक्के मकान बनने से घोसलों के लिए उचित स्थानों का आभाव, पेड़-पौधे का कटान, बदलती जीवनशैली, मोबाइल रेडिएशन का दुष्प्रभाव, तापमान में लगातार होती बढ़ोतरी इत्यादि कई ऐसे प्रमुख कारण हैं। जो गौरैया की विलुप्ति का कारण बन रहे हैं।

खेतों में कीटनाशकों के बढ़ते प्रयोग से भी इनके अस्तित्व पर काफी बुरा असर पड़ रहा है। प्रकृति संतुलन तथा पर्यावरण संरक्षण के लिए जरूरी है कि हम पक्षियों के लिए वातावरण को उनके प्रति अनुकूल बनाने में सहायक बनें। बहरहाल, प्रकृति का संतुलन बनाए रखने में हमारी सहभागी रही गौरेया के संरक्षण के लिए आज लोगों में बड़े स्तर पर जागरूकता पैदा किए जाने की सख्त जरूरत है। यही वक्त का तकाजा भी है।

रजनी कान्त पाण्डेय

मैं रजनी कांत पाण्डेय पत्रकारिता के क्षेत्र में पिछले 15 वर्ष से अधिक समय से कार्यरत हूँ,इस दौरान मैंने कई प्रमुख राष्ट्रीय हिंदी दैनिक समाचार पत्रों में अपनी सेवाएँ दे चूका हूँ. फ़िलहाल समाचार सम्प्रेषण का डिजिटल माध्यम को चुना है जिसके माध्यम से जनसरोकार की ख़बरों को प्रमुखता से प्रकाशित कर सकूं |

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