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जाने कब है रक्षाबंधन का शुभ मूहुर्त

रक्षाबंधन: भाई-बहन के स्नेह का पर्व

चंदौली। भाई-बहन के स्नेह का पर्व रक्षाबंधन प्रतिवर्ष श्रावण माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन बहनें, भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं तथा मस्तक पर तिलक लगा कर मुंह मीठा कराती हैं। भाई, बहन को उपहार देते है तथा उनकी रक्षा का वचन देते हैं।

पौराणिक आख्यानों के अनुसार एक बार देवताओं और असुरों के मध्य लगातार 12 वर्षों तक घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में देवराज इंद्र पराजित हो गए। देवगण कांतिहीन होकर, देवराज इंद्र के साथ अमरावती चले गए। असुरों ने तीनों लोकों पर अपना कब्जा जमा लिया और राजपद से घोषित किया कि सभी लोग यज्ञादि न करके, सब मेरी पूजा करें। असुरों के भय के कारण यज्ञादि धार्मिक कर्म न होने से देवताओं का प्रभावक्षीण होने लगा। तब राजा इंद्र, देवगुरु बृहस्पति की शरण में गए तथा उनसे उपाय पूछा तब देव गुरु बृहस्पति में रक्षा विधान करने को कहा और दूसरे दिन श्रावणी पूर्णिमा थी। उस दिन भोर होते ही देव गुरु बृहस्पति ने “येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।” के महामंत्र से रक्षा विधान संपन्न किया तथा इंद्राणी शचि ने ब्राह्मणों से स्वस्तिवाचन करवा कर देवराज इंद्र की दाहिनी भुजा पर रक्षा सूत्र बांध दिया। रक्षा सूत्र के प्रभाव से इस बार देवताओं को विजयश्री मिली तथा असुर भाग खड़े हुए। तभी से रक्षा सूत्र बांधने की परंपरा चली आ रही है।

महाभारत में एक स्थान पर वर्णित है की एक बार भगवान श्रीकृष्ण को हाथ में चोट लग गई। जिससे रक्त निकलने लगा। द्रौपदी ने ज्यों ही देखा, अभिलंब अपनी साड़ी को फाड़ कर श्रीकृष्ण के हाथ पर बांध दिया। परिस्थितियों बस दु:शासन द्वारा चीरहरण के समय भगवान श्री कृष्ण ने अपनी बहन द्रोपदी के मान को सुरक्षित रखा।

प्राचीन काल में ऋषिगण श्रावणी पूर्णिमा को “उपाकर्म” करा कर विद्या अध्ययन आरम्भ कराते थे। वहीं एक ऐतिहासिक घटना के अनुसार रानी कर्णावती के राज्य को गुजरात के बादशाह बहादुर शाह ने घेर लिया। उस समय राजा का देहांत हो गया था। असहाय रानी ने दिल्ली के मुगल शासक हुमायूँ को अपना भाई मानते हुए दूत के हाथों राखी भेजवाई। हुमायूं ने राखी का शिकार करते हुए रानी कर्णावती की मदद के लिए चल पड़ा और बहादुर शाह से युद्ध किया और बहन की रक्षा का फर्ज निभाया।

रक्षा की कामना किसी आत्मीय सम्बंधी द्वारा ही की जा सकती है। इसलिये रक्षा सूत्र बहने भाई को और पुरोहित अपने यजमान को बांधते है। परंतु वर्तमान में पुरोहित द्वारा यजमानो को आज के दिन रक्षा सूत्र बांधने की परंपरा समाप्त सी हो गई है।

भद्रा काल में क्यों नहीं बांधी जाती है राखी


कहा जाता है कि भद्रा शनिदेव की बहन थी। भद्रा को ब्रह्मा जी से यह श्राप मिला था कि जो भी भद्रा में शुभ या मांगलिक कार्य करेगा, उसका परिणाम अशुभ ही होगा। इसीलिए रक्षाबंधन पर भद्राकाल में राखी नहीं बांधनी चाहिए। इसके पीछे एक पौराणिक कथा भी है। ऐसा कहा जाता है कि लंकापति रावण की बहन ने भद्राकाल में ही उनकी कलाई पर राखी बांधी थी और एक वर्ष के अंदर उसका विनाश हो गया।

इस वर्ष रक्षाबंधन पर कई तरह के संयोग बन रहे हैं। पूर्णिमा तिथि 3 बजकर 44 मिनट से शुरू होकर रात्रि 11 बजकर 55 मिनट पर समाप्त होगी। उदय तिथि के अनुसार 19 अगस्त को रक्षाबंधन मनाया जायेगा। इस दिन भद्रा भी है। भद्रा सुबह 5 बजकर 53 मिनट से शुरू होकर 1 बजकर 32 मिनट तक है। जिससे रक्षा बंधन का पर्व दोपहर बाद 01.35 बजे के बाद मनाया जाएगा। इस वर्ष कई तरह के शुभ योग भी बन रहे हैं। स्वार्थ सिद्वि योग, रवि योग, धनिष्ठा नक्षत्र समेत कई शुभ प्रभावकारी योगों का निर्माण हो रहा है। रक्षाबंधन का शुभ मूहुर्त समय 01 बजकर 35 मिनट से 04 बजकर 20 मिनट तक है।

रजनी कान्त पाण्डेय

मैं रजनी कांत पाण्डेय पत्रकारिता के क्षेत्र में पिछले 15 वर्ष से अधिक समय से कार्यरत हूँ,इस दौरान मैंने कई प्रमुख राष्ट्रीय हिंदी दैनिक समाचार पत्रों में अपनी सेवाएँ दे चूका हूँ. फ़िलहाल समाचार सम्प्रेषण का डिजिटल माध्यम को चुना है जिसके माध्यम से जनसरोकार की ख़बरों को प्रमुखता से प्रकाशित कर सकूं |

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