
सुलतानपुर। सनातन धर्म का सबसे विशाल ग्रंथ वेद और सबसे छोटा ग्रंथ हनुमान चालीसा है। हनुमान जयंती को लेकर कई भ्रामक कथायें प्रचारित कर दी गई हैं। हनुमान का जन्म कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को मंगलवार के दिन मेष लग्न में सायंकाल को हुआ था यही प्रामाणिक है। यह बातें प्रख्यात कथाकार तुलसी पीठाधीश्वर रामभद्राचार्य ने कहीं।
वह विजेथुआ महोत्सव में आयोजित रामकथा के अंतिम दिन प्रवचन कर रहे थे।
उन्होंने बताया कि विजेथुआ के हनुमान अब जागृत हो गये हैं उन्हें परेशान न किया जाय। पूजा के लिए नियम बनाए जायें। हनुमान के गर्भगृह में कोई प्रवेश न करे चाहे पुरुष हों या महिला। केवल पुजारी ही प्रवेश करें।अगर कोई दिक्कत हो तो चित्रकूट की तुलसीपीठ यहां पूरे व्यवस्था की जिम्मेदारी लेने को तैयार है।
हनुमान जन्म की कथा सुनाते हुए कहा कि जब रावण के अत्याचार से धरती परेशान हो गई तब विष्णु ने राम के रूप में अवतार लेने का निश्चय किया। उस समय ब्रह्मा ने तमाम देवताओं से विभिन्न रुपों में धरती पर जन्म लेने को कहा। शंकर ने पार्वती से कहा कि अब मैं वानर बनूंगा। जब मैं शंकर के रूप में नृत्य करता हूं तो प्रलय होता है हनुमान बनकर नृत्य करुंगा तो प्रणय होगा । शंकर ने पार्वती से कहा कि हम ग्यारह रुद्र इकट्ठे होकर हनुमान बनेंगे और शंकर स्वयं केसरी नंदन बनकर अवतरित हुए। शंकर हनुमान बने और पार्वती उनकी पूंछ बनीं। एक बार इन्द्र ने जब वज्र से हनुमान पर प्रहार किया तो हनुमान के हनु से लगकर इन्द्र का वज्र टूट गया। तब इन्द्र ने इनका नाम हनुमान रख दिया।
उन्होंने बताया कि संजीवनी बूटी लाने जा रहे हनुमान को प्यास इसलिए लगी क्योंकि प्रभु को धन्य मालिनी नामक उस अप्सरा का उद्धार कराना था जो मकरी बनी थी । विजेथुआ में हनुमान के जल मांगने पर कालिनेमी ने अपना कमंडल दे दिया जिस पर हनुमान को उसके राक्षस होने का आभास हुआ। क्योंकि कोई भी परम्परागत साधु अपना कमंडल, दंड और ठाकुर किसी को नहीं देता। इसके बाद हनुमान ने अप्सरा के साथ साथ कालनेमी को भी मुक्त कर दिया।
मुख्य यजमान विवेक तिवारी ने सपत्नीक चरण पूजन कर कथा की शुरुआत की। संचालन श्याम चंद्र श्रीवास्तव ने किया।
इस अवसर पर भाजपा जिलाध्यक्ष डॉ आर ए वर्मा , सुशील त्रिपाठी, हरिश्चंद्र श्रीवास्तव, डॉ सुशील कुमार पाण्डेय साहित्येन्दु, डॉ इन्दु शेखर उपाध्याय , ओमप्रकाश पाण्डेय बजरंगी आदि उपस्थित रहे।