
चंदौली। वर्ष भर में 24 एकादशी आती हैं 12 शुक्ल पक्ष की और 12 कृष्ण पक्ष की और हर एकादशी का खास महत्व होता है लेकिन शास्त्रों में निर्जला एकादशी को मोक्ष देने वाली एकादशी कहा जाता है इसे भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है इस दिन व्रत करने के अलावा गंगा में स्नान करने और दान करने का विशेष महत्व होता है
वर्ष की सभी एकादशी में निर्जला एकादशी व्रत सबसे कठिन माना जाता है इसमें अन्न के साथ ही जल का त्याग करना पड़ता है धार्मिक मान्यताओं के अनुसार निर्जला एकादशी का व्रत और विष्णु की विधिपूर्वक पूजा करने से मोक्ष और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है।

पं लक्ष्मी नारायण पांडेय बताते हैं कि वर्ष 2024 में महावीर पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 16 जून को रात्रि 2 बजकर 54 मिनट से होगी। वहीं इस तिथि का समापन 17 जून को रात्रि 4 बजकर 29 मिनट पर होगा ऐसे में गृहस्थजन के लिए निर्जला एकादशी व्रत 17 जून को किया जाएगा एवं वैष्णव भक्तों का एकादशी व्रत 18 जून को किया जाएगा
निर्जला एकादशी पर जानें व्रत कथा
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब वेदव्यास ने पांडवों को धर्म, अर्थ, कर्म और मोक्ष देने वाली एकादशी व्रत का संकल्प कराया था तब युधिष्ठिर ने पूछा था ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में जो एकादशी है उसके बारे में विस्तार से बताइए इस पर भगवान श्री कृष्ण ने कहा हे राजन इस बारे में परम धर्मात्मा व्यास जी बताएंगे तब व्यास जी ने बताया कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशी में भोजन नहीं किया जाता है और उसके अगले दिन द्वादशी तिथि को स्नान करके पवित्र होकर फूलों से भगवान केशव की पूजा की जाती है पहले ब्राह्मण को भोजन कराकर बाद में खुद भोजन किया जाता है
इस पर भीमसेन बोले- पितामह मैं आपके सामने सच कहता हूं मुझसे एक बार भोजन करके भी व्रत नहीं किया जा सकता तो फिर उपवास करके मै कैसे रह सकता हूं मै पूरे साल में केवल एक ही उपवास कर सकता हूं, जिससे स्वर्ग की प्राप्ति हो अगर ऐसा कोई व्रत है तो बताएं इस पर व्यास जी ने कहा ज्येष्ठ माह में सूर्य वृष राशि पर हो या मिथुन राशि पर शुक्ल पक्ष में जो एकादशी आती है उस पर निर्जला व्रत करें एकादशी तिथि पर सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक जल नहीं पिएं तब यह व्रत पूरा होगा इसके बाद द्वादशी तिथि को स्नान करके ब्राह्मणों को विधिपूर्वक जल और सुवर्ण का दान करें इस तरह से अगर आप केवल निर्जला एकादशी का व्रत करते हैं तो इससे सालभर में जितनी भी एकादशी तिथि होती है उसका फल प्राप्त होता है उन्होंने कहा कि जिस भी व्यक्ति ने श्री हरि की पूजा और रात में जागरण करते हुए इस निर्जला एकादशी का व्रत किया उन्हें अपने साथ-साथ पिछली 100 पीढ़ियों को और आने वाली 100 पीढ़ियों को भगवान वासुदेव के परम धाम में पहुंचा दिया है कहते हैं कि जो व्यक्ति इस एकादशी पर सच्चे मन से व्रत करता है वो स्वर्ग लोक में जाता है। इसी लिए इसे भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।