उत्तर प्रदेशचंदौलीब्रेकिंगशिक्षा

आयुर्वेद के विस्तृत क्षेत्र की महाऔषधि प्रवाल पंचामृत, अनेकों उपद्रवों का शमन करने मेंअचूक- आचार्य डॉ. मदन गोपाल वाजपेयी

परिवर्तन न्यूज चंदौली

सकलडीहा। प्रवाल पंचामृत आयुर्वेद की विस्तृत क्षेत्र की महाऔषधि मानी जा सकती है यदि कोई इसका प्रयोग सीख जाये तो यह अनेकों उपद्रवों का शमन कर सकती है और पोषण भी। यह उक्त विचार आयुष ग्राम चिकित्सालय चित्रकूट के चरक स्वरूप वरिष्ठ चिकित्सक व धनवंतरि परिवार के संस्थापक तथा हजारों शिष्यों के महागुरु आचार्य डॉ. मदन गोपाल वाजपेयी जी ने अपने शिष्यों के बीच व्यक्त किया।

आगे प्रवाल पंचामृत पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इसकी प्रभावशालिता सिद्ध करने के लिए शास्त्रकार ने लिखा है कि गुरुवचन के महत्व का इससे अच्छा उदाहरण शायद कहीं मिले। गुरुवाक्य महत्व का एक और दृष्टान्त जब आप पढ़ लेंगे तो फिर इस औषधि का महत्व और समझ में आ जायेगा। भगवान शिव जी को पाने के लिए माता पार्वती जी को घोर तप करना पड़ा, इसके बाद भी उन्हें शिव जी की कई परीक्षाओं से गुजरना पड़ा। एक बार तो भगवान् शिव ने सप्त ऋषियों को ही पार्वती जी की परीक्षा हेतु भेज दिया। सप्त ऋषियों ने भगवान् विष्णु की बड़ाई की और शिव जी के दोष बताना शुरू कर दिया। तब पार्वती जी ने बहुत सुन्दर उत्तर दिया कि मैंने नारद जी द्वारा बताये साधना मार्ग से शिव जी की आराधना शुरू कर दी अत: वे मेरे गुरु हैं, अब चाहे जो हो जाय मैं इससे डिगने वाली नहीं हूँ। इसे कहते हैं दृढ़ता।

पार्वती जी ने यहाँ तक कह दिया कि जिसे गुरु के वचनों पर विश्वास नहीं है उन्हें सुख और सिद्धि स्वप्न में भी सुगम नहीं हो सकता है। गुरु वचन पर विश्वास करने वाले की भगवान् सारी व्यवस्था सम्हाल लेते हैं। इसीलिए आयुर्वेद शास्त्र गुरु वाक्य की प्रामाणिकता की उपमा देकर प्रवाल पंचामृत की प्रभावकारिता सिद्ध कर रहा है। प्रवाल पंचामृत योगरत्नाकर ग्रन्थ की महौषधि है। इसमें प्रवाल भस्म से आधा मोती भस्म, इससे आधा शंख भस्म, इससे आधा मुक्ताशुक्ति भस्म और उससे आधा वराटिका भस्म। फिर अर्क दुग्ध (अभाव में पत्र स्वरस) की भावना देकर शराब सम्पुट से पाक किया जाता है। यह क्षारीय औषधि है, इसकी सेवनीय मात्रा 375 मि.ग्रा. है और अनुपान रोगानुसार है।

योगरत्नाकर लिखते हैं कि प्रवाल पंचामृत का उपयोग आनाह (पेट फूलना), गुल्म, उदर, प्लीहा रोग, कास, श्वास, अग्निमांद्य, अजीर्ण, उद्गार, हृदय रोग, ग्रहणी, अतिसार, प्रमेह, मूत्र रोग, मूत्रकृच्छ्र एवं अश्मरी (पथरी) में है। इसे गुरु वाक्य की तरह सत्य और सन्देह रहित मानना चाहिए। इसके सेवन में शास्त्र एक विशेष बात और कह रहे हैं कि सेवनकर्ता व्यक्ति पथ्याश्रित भोजन पर हो और उसकी चित्तवृत्ति पवित्र, निर्मल हो अर्थात् क्रोध, ईष्र्या, लोभ, शोक, काम, मोह से मुक्त हो। बताइये, कितना गहन और वैज्ञानिक चिंतन है आयुर्वेद का किन्तु यह भी प्रश्न है कि कितने चिकित्सक प्रवाल पंचामृत के सेवन के समय रोगी को इस तरह की मानसिक पवित्रता का निर्देश देते हैं और जो रोगी मानसिक पवित्रता रखते हुए पथ्याश्रित भोजन का पालन करते हुए प्रवाल पंचामृत का सेवन करते हैं उनमें जादू जैसा प्रभाव भी होता है।

इस लेख को लिखते समय हमने योगरत्नाकर, भैषज्यरत्नावली अम्बिकादत्त शास्त्री तथा प्रो. सिद्धिनन्दन मिश्र० भारत भैषज्यरत्नाकर की टीकाओं का अवलोकन किया। लेकिन किसी भी टीकाकार ने निर्मल चित्तवृत्या का अनुवाद नहीं लिखा जबकि औषधि सेवन के नियमों और स्वास्थ्य रक्षण तथा स्वास्थ्य लाभ में यह वाक्य अति महत्वपूर्ण है। क्योंकि स्वास्थ्य की परिभाषा में प्रसन्नात्मेन्द्रिय मना: स्वस्थ इत्यभिधीयते तो निरोगी रहने में विषयेष्वसक्त: दाता सम: सत्यपर: कहकर चित्तवृत्तियों की पवित्रता को आयुर्वेद ने महत्वपूर्ण बताया है। बताइये, अब कितने आयुर्वेदाचार्य प्रवाल पंचामृत के गुण, उपयोग जानने हेतु मूल ग्रन्थ को देखेंगे? सामान्यत: चिकित्सक इस पर ध्यान नहीं देते और जब औषधि लाभ नहीं करती तो औषधि को दोष देते हैं। इसलिए चिकित्सकों को चाहिए कि शास्त्र का अच्छी तरह से अवलोकन कर चिकित्सा कार्य में प्रवृत्त हों और यश प्राप्त करें। प्रवाल पंचामृत सेन्द्रिय कैल्शियम और विटामिन डी का प्राकृतिक स्रोत है, इस स्रोत की विशेषता यह है कि यह अग्नि के संपर्क से तैयार किया जाता है अत: इसका पाचन अच्छा होता है और शरीर में अवशोषण भी। शोधों से यह भी प्रामाणित हुआ है कि कैल्शियम और विटामिन डी की कमी से भी मधुमेह रोग होता है।

यह स्थिति महिलाओं में विशेषत: पायी जाती है। यह बात वैदिक चिकित्सा के विद्वानों को न जाने कब ज्ञात हो गयी थी, तभी तो उन्होंने प्रवाल पंचामृत के गुण उपयोग में प्रमेह/मधुमेह रोग में किडनी रोगियों को मौसम परिवर्तन या खान-पान, बदलने या मानसिक शारीरिक बदलाव आने पर दस्त आने लगते हैं ऐसे रोगी को जब कोई एलोपैथिक दवा दी जाती है तो बहुत हानि होती है। इन रोगियों को हम प्रवाल पंचामृत (मुक्तायुक्त) 250 मि.ग्रा., भुना जीरा चूर्ण 250 मि.ग्रा. और कच्चा जीरा चूर्ण 250 मि.ग्रा. मिलाकर दिन में 2 या 3 बार सौंफ अर्क के साथ सेवन कराते हैं, भोजन में खिचड़ी देते हैं तो इसका त्वरित और प्रभावकारी परिणा मिला है। इसके सेवन से दस्त तो रुकते ही हैं साथ ही पाचनतंत्र स्वस्थ हो जाता है और निर्बलता भी दूर होती है। हाथ-पैरों की जलन भी मिट जाती है।

रजनी कान्त पाण्डेय

मैं रजनी कांत पाण्डेय पत्रकारिता के क्षेत्र में पिछले 15 वर्ष से अधिक समय से कार्यरत हूँ,इस दौरान मैंने कई प्रमुख राष्ट्रीय हिंदी दैनिक समाचार पत्रों में अपनी सेवाएँ दे चूका हूँ. फ़िलहाल समाचार सम्प्रेषण का डिजिटल माध्यम को चुना है जिसके माध्यम से जनसरोकार की ख़बरों को प्रमुखता से प्रकाशित कर सकूं |

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!