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प्रकृति से संस्कृति तक जुड़ा है लोक आस्था का महापर्व छठ

परिवर्तन न्यूज़/संपादक
  रजनीकांत पांडेय

सूर्योपासना और लोक आस्था का महापर्व छठ, देश के विभिन्न क्षेत्रों को अपने प्रकाश पुंज से अलौकिक कर रहा यह व्रत अब दुनिया के कई देशों में पूरी श्रद्धा व अनुशासन के साथ मनाया जा रहा है! भगवान भाष्कर के उपासना का महापर्व छठ भारतीय संस्कृति की अनूठी धरोहर है। यह पर्व सिर्फ उपासना और अनुष्ठानों का ही नहीं है, बल्कि सामाजिक समरसता और प्रकृति के साथ जुड़ाव का भी जीवंत उदाहरण है। इस व्रत में व्रती मनोरथ सिद्धि के लिए 36 घंटों का निर्जला उपवास रखती हैं।

सूर्य की शक्ति के मुख्य स्रोत उषा और प्रत्युषा को व्रती दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना करती हैं। इस साल गुरुवार को अस्ताचलगामी सूर्य की अंतिम किरण प्रत्युषा को अर्घ्य देना उम्मीद और आशा का दामन थामना सिखाता है। चाहे कोई कितना भी शक्तिशाली हो अवसान अवश्यम्भावी है। वहीं उदीयमान सूर्य की पहली किरण उषा का नमन यह बताता है कि हमें धैर्यपूर्वक समय का इंतजार करना चाहिए!

!क्योंकि जिसका अंत हुआ है उसका उदय भी होगा! वहीं इस पर्व में सभी वर्गों को एकत्र करने की भी सीख मिलती है। ईख आदि किसानो की तो औषधीय गुण से भरपूर लौंग, इलायची, सुपारी भी इस पूजा का महत्वपूर्ण अंग है! तो गुड़, बतासा, नारियल, बांस के दउरा, मिट्टी का चूल्हा भी अनिवार्य है। सूर्योपासना के पर्व में भगवान सूर्य की मानस बहन षष्ठी देवी यानी छठी मैया की भी पूजा अर्चना होती है। अथर्ववेद के अनुसार षष्ठी देवी भगवान सूर्य की मानस बहन है।

रजनी कान्त पाण्डेय

मैं रजनी कांत पाण्डेय पत्रकारिता के क्षेत्र में पिछले 15 वर्ष से अधिक समय से कार्यरत हूँ,इस दौरान मैंने कई प्रमुख राष्ट्रीय हिंदी दैनिक समाचार पत्रों में अपनी सेवाएँ दे चूका हूँ. फ़िलहाल समाचार सम्प्रेषण का डिजिटल माध्यम को चुना है जिसके माध्यम से जनसरोकार की ख़बरों को प्रमुखता से प्रकाशित कर सकूं |

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