
परिवर्तन न्यूज़ चंदौली
सकलडीहा। बुद्धिर्यस्य बलं तस्य अर्थात नीतिशास्त्र का ऐसा वचन है कि सच में वही बलवान है जिसने बुद्धि का सही उपयोग किया है। बुद्धि जब सात्विकता से ओत-प्रोत रहती है तभी उसका सही उपयोग हो पाता है और वही विवेक बन जाती है। यह उक्त ज्ञानवर्धक बातें आयुष ग्राम चिकित्सालय के संस्थापक व मानव जीवन को कल्याणकारी बनाने की अलख जगाने वाले सुप्रसिद्ध महात्मा आचार्य डॉ. मदन गोपाल वाजपेयी जी ने अपने शिष्यों के बीच व्यक्त किया।
आगे कहा कि हमे आज जितने भी लोग सुखी और दु:खी, सफल-असफल, पुण्यात्मा-पापी, धनी-निर्धन दिखायी पड़ रहे हैं, यह सब अन्तर शरीरों का नहीं होता। क्योंकि सभी मानव को प्रकृति ने दो हाथ, दो पैर, दो आँख, दो कान और एक नाक दिया है। बस अन्तर केवल बुद्धि का है। जब बुद्धि तमोदोष से घिरी रहती है तो वह आलस्य, प्रमाद और व्यर्थ की निद्रा में घेरी रहती है और उससे उबरने नहीं देती है। उसीको व्यक्ति सही मान कर चलता रहता है। जिसके कारण उसे हर जगह नकारात्मकता और विपरीतता ही दिखाई पड़ती है, अंततः पतनगामी हो जाता है।
यही बुद्धि जब रजोदोष से घिरी रहती है तब सही गलत, कर्तव्य अकर्तव्य, धारणीय अधारणीय को यथार्थता में मानव नहीं समझता, एकदम विचलन में रहता है। लेकिन जो मानव प्रवृत्तिमार्ग पर है अर्थात् गृहस्थ मार्ग में रहते हुए फल और आसक्ति को छोड़कर लोक शिक्षा और लोक कल्याण के लिए कार्य कर रहा है और देहाभिमान को त्याग कर निवृत्तिमार्ग पर चलते हुए संसार से उपराम होकर परमात्मा से एकीभाव होकर विचरण कर रहा है।
वह गलत, सही, कर्तव्य, अकर्तव्य का विवेक रखता है, क्या करने से भय उत्पन्न होगा, क्या करने से निर्भयता रहेगी, क्या करने से बन्धन रहेगा और क्या करने से मुक्ति रहेगी ऐसा विवेक है तो वह व्यक्ति सात्विक बुद्धि युक्त है। यही बुद्धि उन्नति दायक, सुख दायक, सफलतादायक, पुण्यप्रदायक और सम्पत्तिदायक होती है। जो मानव को हर लोक मे प्रिय बनाती है। तभी तो भगवान श्री कृष्ण ने गीता में अर्जुन से कहा है कि स्थूल शरीर से इन्द्रियाँ बलवान् और सूक्ष्म हैं, इन्द्रियों से मन और मन से बुद्धि श्रेष्ठ है और बुद्धि से आत्मा श्रेष्ठ है इसलिए अर्जुन! तुम बुद्धि को, आत्मज्ञान में लगाकर महान् शत्रु काम को नष्ट कर डालो, कामनाओं के नष्ट हो जाने से शांति प्राप्त हो जाती है। इसलिए बुद्धि को सात्विक मार्ग में ले जाते हुए खूब उन्नति प्राप्त करना चाहिए।
ध्यान रहे कि हमारी बुद्धि सात्विकता की ओर जानी चाहिए जिसमें साधना, संयम, तप, जप, सदाचार, अच्छे साहित्य का स्वाध्याय, मनन और सात्विक संयमित सामयिक आहार शामिल रहे। ये बुद्धि विशोधक उपाय हैं। इसीलिए चरक जैसा महान् वैज्ञानिक कहते हैं कि शस्त्र, शास्त्र और जल इनमें पात्र के अनुसार गुण दोष आते हैं। इसलिए निराकरण कर्ता (चिकित्सक) को श्रेष्ठ पात्रता की प्राप्ति के लिए बुद्धि का विशोधन करते रहना चाहिए। इस मौके पर सीमा, आलोक पाल, डा. चांदनी गुप्ता सहित अन्य शिष्यगण रहे।